एक देश-एक चुनाव बिल (One Nation One Election Bill) पेश करने को लेकर वोटिंग: लोकसभा में पक्ष में 269, विरोध में 198 वोट पड़े | वन नेशन, वन इलेक्शन बिल
वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation One Election Bill) (एक राष्ट्र, एक चुनाव) का तात्पर्य है कि पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। यह विचार चुनावों के दौरान होने वाले खर्च, समय और संसाधनों की बचत के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है।
स्वतंत्रता के बाद, 1951-52 से 1967 तक, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले विघटन के कारण यह प्रणाली बाधित हो गई, जिससे चुनावी चक्र असंगत हो गया। 2014 के बाद से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विचार का समर्थन किया है, यह तर्क देते हुए कि इससे सार्वजनिक धन की बचत होगी और विकास कार्यों में बाधाएं कम होंगी।
लोकसभा में मंगलवार को एक देश, एक चुनाव के लिए 129वां संविधान (संशोधन) बिल पेश किया। बिल के लिए पहले इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई। कुछ सांसदों की आपत्ति के बाद वोट संशोधित करने के लिए फिर पर्ची से मतदान हुआ।बिल को पेश करने के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 मत पड़े |
विपक्ष की प्रतिक्रिया
कई विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका तर्क है कि यह संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और क्षेत्रीय दलों की भूमिका को सीमित करेगा। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने समिति में अपनी भागीदारी से इनकार करते हुए इसे “पूर्ण दिखावा” करार दिया। पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव मोदी सरकार के पतन का कारण बनेगा”।
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल (One Nation One Election Bill) के लाभ:
खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। सभी चुनाव एक साथ कराने से खर्च में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
शासन में निरंतरता: बार-बार चुनाव होने से सरकार को आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) का पालन करना पड़ता है, जिससे नीति निर्माण और विकास कार्य रुक जाते हैं। एक साथ चुनाव से यह रुकावट कम होगी और योजनाओं को तेजी से लागू किया जा सकेगा।
प्रशासनिक सुविधा: चुनाव कराने में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों और प्रशासनिक कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। एक साथ चुनाव कराने से इन संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होगा।
वोटर की भागीदारी बढ़ाना : बार-बार चुनाव होने से मतदाता उदासीन हो जाते हैं और मतदान का प्रतिशत कम हो जाता है। एक साथ चुनाव होने से लोग अधिक उत्साह से भाग ले सकते हैं।
चुनावी दबाव में कमी: राजनीतिक दल बार-बार चुनाव के दबाव में रहते हैं, जिससे दीर्घकालिक नीति निर्माण पर असर पड़ता है। एक साथ चुनाव से उन्हें इस दबाव से राहत मिलेगी।
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल (One Nation One Election Bill) के चुनौतियां:
संवैधानिक जटिलता: लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होते हैं। एक साथ चुनाव करवाने के लिए संविधान में बड़े बदलाव करने होंगे, जो आसान नहीं है।संविधान में आवश्यक संशोधनों के लिए संसद और आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी आवश्यक होगी, जो एक जटिल प्रक्रिया है।
संघीय ढांचे पर असर: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्ताव भारत के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है, जहां राज्यों की स्वायत्तता महत्वपूर्ण है। भारत एक संघीय देश है, जहां केंद्र और राज्य अपनी-अपनी सरकारें चलाते हैं। अगर चुनाव एक साथ होते हैं, तो राज्यों को यह महसूस हो सकता है कि उनकी स्वायत्तता पर आंच आ रही है।
स्थानीय मुद्दे दब सकते हैं: एक साथ चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो सकते हैं, जिससे स्थानीय समस्याएं और मुद्दे अनदेखे रह सकते हैं।
अलग-अलग कार्यकाल का समायोजन: अगर किसी राज्य सरकार का कार्यकाल बीच में समाप्त हो जाए (जैसे अविश्वास प्रस्ताव के कारण), तो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना होगा। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
लॉजिस्टिक चुनौती: भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में एक साथ चुनाव करवाना, जहां करोड़ों मतदाता हैं, चुनाव आयोग और प्रशासन के लिए बहुत बड़ा कार्य है।
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निष्कर्ष:
वन नेशन, वन इलेक्शन एक दिलचस्प और प्रभावशाली विचार है, लेकिन इसे लागू करने से पहले गहन अध्ययन, व्यापक राजनीतिक सहमति और ठोस प्रशासनिक योजना की आवश्यकता होगी। यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत कर सकता है, लेकिन अगर इसे बिना तैयारी और सहमति के लागू किया गया तो यह जटिलताएं भी खड़ी कर सकता है|
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