Renaissance: पुनर्जागरण के कारण

Reasons for the rise of the Renaissance

पुनर्जागरण ( Renaissance )के कारण निम्नलिखित थे :-
1.इटली के नगर ज्ञान व संस्कृति के केन्द्र थे
2. मानववाद का केन्द्र होना

Reasons for the rise of the Renaissance

आम तौर पर माना जाता है कि यह मध्य युग के अंत के बाद 14वीं शताब्दी के दौरान इटली में शुरू हुआ था, और 1490 और 1520 के दशक के बीच यह अपने चरम पर पहुँच गया, जिसे उच्च पुनर्जागरण ( Renaissance ) कहा जाता है। पुनर्जागरण के कारण ( Reasons for the rise of the Renaissance ) निम्नलिखित थे :-

  1. इटली के नगर ज्ञान व संस्कृति के केन्द्र थे – यूनानी विद्वान कुस्तुनतुनिया से भागकर इटली के रोम, फ्लोरेन्स, वेनिस व मिलान नगरों एकत्रित हो गये। उनके यहां आने से बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। इन शैक्षणिक केन्द्रों रोम के विद्वानों में विचारों का आदान-प्रदान आरंभ हुआ ।
  2. मानववाद का केन्द्र होना – मानववादी आन्दोलन का सर्वाधिक उत्कर्ष इटली में ही हुआ था । इस आन्दोलन में जिन विद्वानों का सहयोग प्राप्त हुआ उनमें उल्लेखनीय थे- माईकेल एंजलों मेंकियावेली, राफेल, दांते और पेट्रार्क । मानववाद का जन्म दाता पेट्रार्क ही माना जात है। दांते (1265-1321) इटली में पुनर्जागरण का प्रारंभ करने वाला था । तत्कालीन मानववादी विद्वानों में इरासमस का नाम प्रमुख है जिसमें अद्वितीय प्रतिभा, विद्वता व विचारों की गहनता थी। दांते व पेट्रार्क फ्लोरेन्स में ही रहते थे। दांते ने अपनी पुस्तक ‘डिवाइन कॉमेडी’ के माध्यम से मध्ययुगीन रूढ़िवादी भावनाओं व सामन्तों के नैतिक पतन पर तीक्ष्ण प्रहार किया ।
  3. इटली के धनी नगर-मध्य युग में इटली के कई नगर पूर्वी देशों से व्यापार कर धनी बन चुके थे । वे सांस्कृतिक प्रोत्साहन देने में समर्थ थे। इसके अतिरिक्त इन नगरों के धनी पुरुष नवीन कलाकृतियों को जुटाने में सक्षम थे। उन्होंने अपने धन से भव्य-प्रासाद बनाये व सुन्दर उद्यान लगवाये । सुन्दर उद्यानों में भी मानववाद पर आधारित फव्वारे होते थे। चित्र-कला व स्थापत्य कला का तो निखार सर्वप्रथम इटली के नगरों में ही हुआ था। सन्त पीटर का गिरजाघर जो रोम नगर में निर्मित है, आज भी विश्व का एक आश्चर्य बना हुआ है। इसके अलावा इटली के नगर यूनान व पश्चिमी एशियाई देशों के सर्वाधिक समीप पड़ते थे। पुनर्जागरण आन्दोलन ने अन्त में सहारा तो प्राचीन सभ्यता का ही लिया था और प्राचीन सभ्यता रोम के नगरों से कभी पूर्णतः नष्ट नहीं हुई थी। इस कारण भी इस आन्दोलन को इटली के नगरों से महान सहयोग मिला ।
  4. धर्म-युद्धों से लौटने वालों ने भी इटली को ही अपना निवास स्थान बनाया मुसलमानों के विरुद्ध लड़े विभिन्न धर्म- युद्धों में यूरोप के लगभग सभी वर्गों ने भाग लिया था। पोप की प्रेरणा से किसान, सामन्त, शासक व व्यापारी इन धर्म- युद्धों में सम्मिलित हुए थे । युद्ध से लौटकर जब व्यापारी, सामन्त, किसान यूरोप आये तो उनमें से बहुत से इटली में ही बस गये। इस प्रकार जो पूर्वी देशों के व मुस्लिम सभ्यता के विचार अपने साथ लाये; उन्हें इटली में प्रसारित करने लगे। इसके परिणमस्वरूप भी यह आन्दोलन प्रथम इटली में ही आरम्भ हुआ ।
  5. लौरेन्जो का सहयोग – जैसा कि बताया जा चुका है कि इटली के धनी पुरुषों ने पुनर्जागरण को फलीभूत बनाने में महान सहयोग दिया। इन धनी पुरुषों में लौरेन्जों का नाम उल्लेखनीय है । वह फ्लोरेन्स का व्यापारी था और अपने धन की सहायता से वह फ्लोरेन्स की शासन व्यवस्था संचालित करता था । उसने फ्लोरेन्स को सुन्दर उद्यानों व भव्य प्रासादों से अलंकृत किया। उसने अपने महल में चित्र बनाने हेतु अच्छे चित्रकारों को आमन्त्रित किया। कलाकारों को उसने अपने यहां आश्रय दिया तथा उनकी पैन्शनें नियुक्त की। उसके इन प्रयासों का फल यह हुआ कि फ्लोरेन्स नवीन कला का केन्द्र तथा पुनर्जागरण में अपूर्व सहयोग देने वाला नगर बन गया। लौरेन्जों ने यूनानी पांडुलेखों का लेटिन भाषा में अनुवाद करवाकर पुनर्जागरण में अपना सहयोग प्रदान किया । इन्हीं कारणों से वेनिस उस समय इटली का एथेन्स बन गया था।
    था ।
  6. पोप निकोलस पंचम का सहयोग – सन्त पीटर के गिरजाघर का निर्माण कराने वाला पोप निकोलस पंचम उसने वेटिकन पुस्तकालय की स्थापना की तथा लगभग समस्त रोम का निर्माण करवाया। उसने भी रोम में उल्लेखनीय विद्वानों तथा कलाकारों को आमन्त्रित किया । लौरेन्ज यद्यपि पोप की सत्ता का विरोधी था तथापि वह उसके द्वारा आमन्त्रित किया गया तथा सम्मानित किया गया । इसलिए निकोलस पंचम के काल को पुनर्जागरण में ‘स्वर्ण काल’ कहा जाता है। परन्तु पुनर्जागरण आन्दोलन का प्रबल समर्थक होते हुए भी वह विचारों में मध्य युगीन था । तुर्कों के विरुद्ध धर्मयुद्धों को आयोजित करने में भी उसका महान् हाथ था । इसकी भांति ही दूसरा पोप पियूस द्वितीय भी मानववादी था तथा पुनर्जागरण का प्रबल समर्थक था । इस कारण वह भी निकोलस के उपरान्त इस आन्दोलन को अपना सहयोग प्रदान करता रहा ।
  7. फ्लोरेन्स नगर का सांस्कृतिक केन्द्र होना – फ्लोरेन्स उस समय शान्ति थी । अतः वहां साहित्य व कला का विकास सुगमता से हो सका। मानववादी विद्वानों का केन्द्र भी यही नगर था । लौरेन्जो भी इसी नगर का निवासी था जो स्वयं कला प्रेमी था। कई मानववादी विद्वान व कलाकार उसके संरक्षण में पलते थे। इन सबका परिणाम यह हुआ कि फ्लोरेन्स सम्पूर्ण यूरोप की बौद्धिक राजधानी बन गया। इस नगर की आर्थिक समृद्धि ने कलाकारों के लिए अच्छी भूमिका तैयार कर दी। इटली में पुनर्जागरण का श्री गणेश करने वाला प्रथम व्यक्ति दांतें ही था और उसका जन्म भी फ्लोरेन्स में ही हुआ था ।
  1. रोम का लैटिन साहित्य का केन्द्र होना– पुनर्जागरण आन्दोलन में लैटिन व यूनानी भाषाएं ही सहायक सिद्ध हुई हैं। यूनानी साहित्य को कुस्तुनतुनिया से आनें वाले यूनानी विद्वान् अपने साथ लाये तथा लैटिन साहित्य का भण्डार उन्हें इटली में उपलब्ध हो गया। पुनर्जागरण से पूर्व यूरोप की एक मात्र भाषा लैटिन ही थी । सारे ग्रन्थ लैटिन भाषा में ही रचे जाते थे । अतः इटली लैटिन साहित्य का केन्द्र प्राचीनकाल से ही चला आ रहा था और इसी कारण वह इस आन्दोलन को प्रेरणा देने का भी प्रधान केन्द्र बन गया। दांते कवि को पुनर्जागरण का महान् निदेशक एवं प्रणेता माना जाता है। वह इटली काही निवासी था और उसने अपनी पुस्तक ‘डिवाइन कॉमेडी’ (Divine Comedy) लैटिन भाषा में ही रची थी। इस ग्रन्थ में पोप तथा सामन्तों के नैतिक पतन की ओर जनसाधारण का ध्यान आकृष्ट किया गया था। उसने स्वतन्त्रता तथा व्यक्तिवाद की भावना का प्रसार किया और यही भावना नवीन संस्कृति के हर पहलू में पाई जाती है।
    उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट है कि नगर राज्यों की स्थापना, पूंजीवादी उद्यम एवं संगठन और बुर्जआ जीवन मूल्यों की स्थापना ने इटली प्रायद्वीप में न केवल पुनर्जागरण को यूरोप में जन्म दिया वरन् उसे दिनों दिन विकसित भी किया।
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– पुनर्जागरण( Renaissance ) के प्रभाव

पुनर्जागरण किसी आकस्मिक घटना का तो प्रतिफल था नहीं। यह आन्दोलन तो यूरोपीय देशों को सदियों तक आन्दोलित करता रहा ओर मानव जीवन के अनेक क्षेत्रों को इसने अपना प्रभाव स्थल बनाया। मानव समाज का धर्म, विज्ञान, व्यापार, कला, शिक्षा, कृषि आदि सभी तो इसके कार्य क्षेत्र में समाविष्ट थे । अतः यह स्वाभाविक ही था कि इस आन्दोलन के प्रभाव भी व्यापक ही पड़े और मानव-समाज इससे प्रभावित भी हो ।

साहित्य पर प्रभाव

साहित्य पर प्रभाव – साहित्य के पुररुत्थान का पहला केन्द्र इटली था। चौदहवीं शताब्दी से ही इटली में यूनानी भाषा की ओर रुचि जागृत हो रही थी। इस नये युग का निर्देशक महाकवि दांते था । उसका जन्म इटली के फ्लोरेन्स नगर में हुआ था। अपनी प्रेयसी बिएट्रिससे विवाह न होन के कारण वह सांसारिक जीवन के प्रति तो उदासीन हो गया पर वह सदैव इटली के हित में सोचता रहा। उस समय इटली में अनेक छोटे बड़े राज्य थे। वे सदा एक दूसरे से झगड़ते रहते थे । इसके अलावा उस समय रोम के सम्राट व पोप के बीच भी दलबन्दियां सक्रिय हो गई थीं। अतः दांते ने अपना जीवन इटली की दशा सुधारने में लगा दिया था । यद्यपि धार्मिक दृष्टिकोण से दांते मध्यकालीन था तथापि अन्य कई क्षेत्रों में वह भविष्य का अग्रदूत था। उसने अपनी मातृभाषा इटेलियन में ‘डिवाइन कॉमेडी’ नामक एक सुन्दर काव्य लिखा। इस काव्य में उसने नरक के मर्मस्पर्शी काल्पनिक दृश्यों को वर्णन किया है अतः स्पष्ट है कि यह काव्य दांते के काल्पनिक विचारों की उपज है फिर भी इसमें मध्ययुगीन भावनाएं, सामंत सरदारों के नैतिक पतन, तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था आदि की स्पष्ट झलक दृष्टव्य है। दांते स्वतन्त्रता तथा व्यक्तिवादी भावना पर बहुत बल देता था। उसने अरस्तू की ‘सच्चे दार्शनिक’ के रूप में प्रतिष्ठा की और रोम के प्रसिद्ध कवि वर्जिल को अपना पथ प्रदर्शक बनाया। रोम तथा यूनान के कवियों के द्वारा उसकी बड़ी प्रंशसा की गई है। दांते के पश्चात् पेट्रार्क ने साहित्य के पुनरुत्थान में बड़ा सहयोग दिया। उसने मध्यकालीन शिक्षा का परित्याग किया और विद्वानों का ध्यान यूनान तथा रोम के प्राचीन साहित्य-सौन्दर्य की ओर आकृष्ट किया । वह अपनी रचना सॉनेट में रचता था। उसने यूनान और लैटिन भाषा के लगभग दो सौ हस्तलिखित ग्रन्थ संकलित किये। पेट्रार्क को इटली का प्रथम आधुनिक व्यक्ति माना गया है। उसने ऐसे विषयों पर अधिक लिखा जिनके लिये सामान्य लोग इच्छुक थे। उसके प्रयत्नों से इटली के पुनर्जागरण ने साहित्य के क्षेत्र को बहुत प्रभावित किया। उसकी प्रतिभा का प्रभाव फ्लोरेन्स में ही दृष्टव्य नहीं था वरन् समस्त यूरोप में व्याप्त था । मानववाद को प्रेरणा देने वाला भी यही कवि पेट्रार्क था। उसके आत्मविश्वास तथा प्रयत्न से मध्यकालीन आध्यात्मवाद या धार्मिक रहस्यवाद की ओर से लोगों को वैराग्य उत्पन्न हो गया। अब जनसाधारण की अभिरुचि मानव के सुख-दुःख, सौन्दर्य, प्रेम और व्यवहारिक विज्ञान के अध्ययन की ओर उन्मुख हुई ।

डेसीडेरियस इरास्मस

– इरास्मस भी प्रमुख मानववादी था। हालांकि जन्म से वह डच था । मानववाद का प्रचारक होते हुए भी वह पुनर्जागरण की महान् विभूतियों में था । इटली में अधिक समय व्यतीत करने पर भी विश्व के बुद्धिजीवियों पर उसका प्रभाव छाया हुआ था। उसने ‘मूर्खता की प्रशंसा’ (Praise of Fotty) पुस्तक लिखी। अपनी पुस्तक में उसने धर्माधिकारियों के पाखण्डों पर अच्छा व्यंग्य कसा है। इस पुस्तक के अब तक 600 संस्करण निकल चुके हैं।

यूरोप के अन्य देश


— इटली के उत्तर में स्थित आल्पस पर्वत को पार कर पुनर्जागरण का आन्दोलन अन्य देशों में पहुंचा । इटैलियन भाषा की तरह अन्य देशों में भी प्रादेशिक भाषाएं विकसित हुईं। फ्रांसीसी भाषा सरसता और साहित्य की दृष्टी से लैटिन और इटैलियन भाषा से समता करने लगी। इस समय फ्रांस में रेबीलेस एक अच्छा गद्य लेखक था । उसने अपने उपन्यासों द्वारा मानव के स्वतन्त्र चिन्तन के महत्व पर प्रकाश डाला। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक (Gargantua) ‘गर्गनतुआ’

पुनर्जागरण की संक्षिप्त कहानी मानी जाती है। उसकी रचनाएं व्यंग्यात्मक होती थीं। मोन्टेगन एक अच्छा निबन्ध लेखक था। वह अपनी ओजपूर्ण शैली एवं भावों के स्पष्ट व्यक्तिकरण के कारण फ्रांस का तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ गद्य लेखक बन गया था। वह वास्तव में व्यक्तिवादी था और व्यक्तिगत अनुभव ही उसकी रचनाओं के विषय थे। गीत-काव्य में रामसर्द विख्यात था। दांते के अलावा पेटार्क और बाकेशियो भी ऐसे विद्वान थे जिन्होंने अपनी रचनाएं इटली भाषा में ही कीं। बोकेशियो ने अपनी कृति ‘दिकामरो’ में तत्कालीन इटली के सम्पन्न तथा संभ्रांत समाज के नैतिक भ्रष्टाचार की कहानियां प्रस्तुत कीं। टैसियों तथा एरिटों भी इटली के ही महान लेखक थे।

मेकियावली ने अपने ग्रन्थ ‘प्रिन्स’ की रचना भी इतालबी भाषा में ही की । इंग्लैण्ड में भी साहित्य के क्षेत्र में पुनर्जागरण का प्रभाव दृष्टिगोचर हुआ। शेक्सपीयर जैसा विश्व-विख्यात नाट्कार एवं कवि इसी पुनर्जागरण के युग में इंग्लैण्ड में पैदा हुआ था। उसके दुखान्त नाटक हैमलेट तथा मेंकबैथ की तुलना यूनान के दुखान्त एसल्किस, सोफोक्लीज तथा यूरीयाइडीस से की जाती है। बहुत से आलोचकों का कहना है कि संसार में उसके समकक्ष कोई नाटककार अब तक नहीं जन्मा है। फ्रांसिस बेकन इंग्लैण्ड का तत्कालीन एक अच्छा निबन्ध लेखक था और आज भी उसकी गणना अच्छे निबन्ध लेखकों में होती है। बेन फिंगर का कहना है कि फ्रान्सिस बेकन ने मानव मस्तिष्क को व्यर्थ के धार्मिक विचारों से हटाकर प्रकृति के अध्ययन व भविष्य के मानव हित की ओर लगा दिया।

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फिलिप सिडनी ने इस समय भाषा को सुधारने का प्रयास किया और सर टामस मूर ने उटोपिया नाम की एक काल्पनिक पुस्तक लिखी। इसमें उन्होंने अपने समय की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक बुराइयों की आलोचना की है। स्पेन में इस समय सर्वान्टीज एक अच्छा गल्प-लेखक था। उसने डान क्विकजोट नामक एक पुस्तक लिखी । पुर्तगाल में केमोयेन्स एक प्रसिद्ध लेखक हुआ । प्रसिद्ध लेखक जॉन ड्रिंकवाटर के कथनानुसार अंग्रेजी लेखक शेक्सपीयर, फ्रांसीसी लेखक रेबीलेस तथा स्पेनवासी सर्वान्टीज इस पुनर्जागरण विचारधारा के तीन प्रकाण्ड पंडित थे। इन सब लेखकों ने कथावस्तु के लिए धार्मिक विषय नहीं चुने। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा मानव जीवन की साधारण घटनाओं को व्यक्त करने का प्रयत्न किया। भाषा का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन होना आरम्भ हुआ।

इस प्रकार से पुनर्जागरण के युग में यूरोपीय देशों के साहितय में नवीन विचारधाराएं उत्पन्न हुईं और उनके प्रभाव से नवीन ढंग से अध्ययन होना आरम्भ हुआ। इससे स्पष्ट है कि पुनर्जागरण के समय यूरोप के विभिन्न देशों में साहित्य का पर्याप्त विकास हुआ।

इटली की कला पर प्रभाव


– कला क्षेत्र में भी पुनर्जागरण का प्रभाव इटली में ही सर्वप्रथम लक्षित हुआ। इटली की कला की प्रमुख विशेषता यह थी कि वह सौन्दर्यपूर्ण होते हुए भी भौतिक तथ मानसिक दबाव से मुक्त थी । कला के विकास में इटली के विकसित व्यापार ने बहुत सहयोग दिया । प्रायः प्रत्येक नगर में अच्छे कलाकार होते थे और नगर के धनी लोग उनके संरक्षक होते थे। स्थापत्य कला में इटली ने इतनी उन्नति की कि आधुनिक स्थापत्य कला उसकी ऋणी है। फिलीपो ब्रुनेश्लेची इटली का पुनर्जागरण के समय का सबसे अच्छा भवन निर्माता था । पुनर्जागरण के समागम से पूर्व इटली की स्थापत्य-कला धार्मिक विचारधाराओं से बंधी हुई थी और उस कला के दर्शन भी केवल गिरजाघरों में ही होते थे।

अब रोमनस्क शैली का ह्रास होने लगा और उसके स्थान पर गोथिक शैली का प्रयोग होने लगा। इसके अन्तर्गत प्राचीन और अर्वाचीन स्थापत्य कला को संयुक्त कर नवीन प्रकार की कला को जन्म दिया गया । नवीन भवन निर्माण कला पर यूनानी कला का प्रभाव बना रहा। इसी शैली का सबसे सुन्दर नमूना सेंट पीटर का गिरजाघर है। इसका निर्माता माइकेल एंजेलो ही था। कहा जाता है कि वह अपनी मृत्यु के दिन तक 90 वर्ष की आयु में भी इसके निर्माण में लगा रहा। इस शैली के अनुसार भवनों में अब गुम्बद और मेंहराब अधिक बनने लगे। गुम्बदों के अलावा बुर्ज व आश्रय आदि का निर्माण भी होने लगा । खिडकियां चौड़ी होती थीं तथा उनमें रंगीन सुन्दर शीशा लगाया जाता था । इस समय इटली के विख्यात भवन निर्माताओं में माइकेल एंजलो के अलावा लोरेंबोगिवर्टी और रैफल थे। इन कलाकारों के प्रभाव से स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना अब शासकों के महलों और धनी पुरुषों के भव्य भवनों में भी दृष्टिगोचर होने लगा ।


इटली की चित्रकला भी फ्लोरेन्स नगर से विकसित हुई। इस कला को उन्नत बनाने में ल्यूनार्डो-डी- विन्सी का बड़ा हाथ था। वह लिखता है: “अच्छे चित्रकार को दो प्रमुख वस्तुओं का चित्रण करना होता है- मनुष्य और उसके मन की भवनाएं ।” चित्रकार अब धर्माधिकारियों के चित्र ही चित्रित नहीं करते थे, वरन् वे अब अपनी चित्रकला द्वारा लौकिक जीवन की झांकी से भी जनसाधारण को परिचित कराने लगे थे। मनुष्य की शारीरिक विशेषताओं से आकर्षित हो कर उन्होंने सुन्दर चित्रों की रचना की । उनमें मोनोलिसा तथा लास्ट सपर उसके अनुपम चित्र हैं। माइकेल एन्जलो को भी इस काल को उन्नत करने का श्रेय प्राप्त है । फ्लोरेन्स के मेंडिसी प्रासाद की दीवारों पर चित्रित चित्र आज भी पुनर्जागरण के प्रतीक बने हुए हैं। वह सुन्दरता का पुजारी था तथा अपने चित्रों में सजीवता लाने के लिए वह पुरुषों के नग्न चित्र भी चित्रित करता था । उसका ‘अन्तिम निर्णय’ नामक चित्र अति विख्यात है। इस चित्र के बनाने में उसे बीस वर्ष लगे थे। इस चित्र को देखने से

आधुनिक विश्व का इतिहास ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य भय एवं आतंक से त्रस्त है तथा उसे ईश्वर से प्रेम व दया की कोई आशा नहीं है। उसने मानव के शरीर विज्ञान का अध्ययन किया था । उसका कहना था कि चित्र मस्तिष्क से बनाये जाते हैं, हाथ से नहीं । उसने मनुष्य को सृष्टि की सबसे सुन्दर अभिव्यक्ति माना है। एंजलो ने अपनी इसी धारणा पर 145 चित्र बनाये । परन्तु उसके अन्तिम निर्णय के चित्र से ऐसा आभास होता है कि उसे अपनी जीवन काल में अधिक ख्याति नहीं मिली। सेंट पीटर गिरजाघर की भीतरी छत पर उसके चित्र आज भी चित्रकारों के लिये आश्चर्य की वस्तु बने हुए हैं। चित्रकला में प्रकृतिवाद का प्रथम प्रवर्त्तक जीओतो था । मसासियो भी इसी श्रेणी का चित्रकार था । उसने भित्तिचित्रों के माध्यम से प्रकृतिवाद को आगे बढ़ाया। राफेल भी माइकेल एंजेलो की भांति चित्रकार था । उसने मातृत्व ओर वात्सल्य भाव के आकर्षण तथा सजीव चित्र बनाये। उनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय है ‘सिस्टाइन मेंडोना ।’ इसकी गणना विश्व के सुन्दर चित्रों में होती है।

यूरोप के अन्य देशों की कला पर प्रभाव


– इटली की स्थापत्य कला का सर्वाधिक प्रभाव फ्रांस पर पड़ा। इटली के कारीगरों ने फ्रांस जाकर वहां के शासक फ्रान्सिस प्रथम के लिए नवीन शैली पर आधारित अनेक सुन्दर भवन बनाये। स्पेन में फिलीप द्वितीय का भव्य प्रासाद भी इटली की स्थापत्य कला के नमूने पर ही निर्मित है। जर्मनी का हैडेलबर्ग किला भी इस बात का द्योतक है कि जर्मनी भी प्राचीन शैली से विदाई ले रहा था और इटली की नवीन शैली से अपना सम्बन्ध जोड़ रहा था। इंग्लैण्ड में स्थापत्य कला के क्षेत्र में पुनर्जागरण का प्रभाव देर से पड़ा। वहां सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में इनिगो जोन्स के इटली की से लौटने पर इटली स्थापत्य शैली का प्रभाव पड़ा। सेन्ट पॉल का गिरजाघर उस शैली का रम्य नमूना है।


स्थापत्य-कला में कलाकारों ने गोथिक शैली का परित्याग कर यूनान व रोम की प्राचीन कला को अपनाया था, लेकिन साथ में ही उस पर अपने युग की छाप भी रखी। तक्षण कला के क्षेत्र में जीवर्टी तथा दांतेलो के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
इटली की चित्रकला और मूर्तिकला का प्रभाव भी यूरोपीय देशों पर व्यापक रूप से पड़ा । चित्रकला के क्षेत्र में जर्मनी सर्वाधिक इटली से प्रभावित हुआ। जर्मनी के कलाकार ड्यूरर ने जर्मन- चित्रकला का विकास किया। इसके बाद हेन्स हालवेल एक विख्यात चित्रकार जर्मनी में पैदा हुआ। वह उस समय जर्मनी का सबसे महान् चित्रकार था । वह अपने अन्तिम वर्षो में इंग्लैण्ड गया और वहां उसने नवीन शैली पर हेनरी अष्टम का एक सुन्दर चित्र तैयार किया । सत्रहवीं शताब्दी में हालैण्ड में उच्चकोटि के चित्रकार वेलेसक्तीज ने अपनी सुन्दर चित्रकारी से स्पेन को अलंकृत किया। वह भी उस काल का चित्रकार समझा गया है। टाइटियन का तैलचित्र विख्यात है। इसकी गणना विश्व के सुन्दर चित्रों में होती है। फ्लैन्डर्स निवासी वैनडयक तथा डच रेम्ब्रां भी उस युग के विख्यात चित्रकार थे ।

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संगीत कला


– इतिहासकार हेज का कहना है कि संगीत कला का विकास सोलहवीं शताब्दी में पर्याप्त रूप से हुआ। इसका कारण यह था कि मध्यकाल में गिरजाघरों में संगीत वर्जित था। बाद में ऐसा नहीं रहा । गिरजाघरों में सेंट एम्ब्रोस संगीत का होना आवश्यक बताया। मार्टिन लूथर ने अपना धर्म यूरोप में चलाया तो नवीन धर्म में गीतों का प्रादुर्भाव हुआ । इस प्रकार संगीत कला भी शनैः शनैः विकसित होने लगी। पैलेस्ट्रीना उस समय इटली का विख्यात गायक था । इसका यह नाम इसके जन्म-स्थन पर पड़ा। उसने 1554 ई. में अपनी रचना ‘Massesa’ प्रकाशित कराई। इस ग्रंथ की रचना इतनी सुन्दर है कि यह आज तक लोकप्रिय बनी हुई है। पूर्वी प्रभाव के कारण संगीत में नवीन राग-रागनियों का विकास हुआ। उससे आधुनिक संगीत की नींव पड़ी। ‘ग्रिगोरियन’ धुन का जन्म पहले तथा ‘काउन्टर प्वाइंट धुन’ का विकास बाद में हुआ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप में कला का सर्वांगीण विकास हुआ और उस काल की कला को अज तक मात नहीं दी जा सकी है। पुनर्जागरणकालीन कला का सबसे आश्चर्यजनक गुण उसका नैसर्गिक गुण था। उसमें कुछ भी अप्राकृतिक दृष्टिगत नहीं होता और न ऐसा लगता है कि व्यर्थ का श्रम किया है। उस काल की कला ने मानव के प्रत्येक पहलू को दर्शाना चाहा है । पुनर्जागरण की कला का लोकप्रिय होने का प्रमुख कारण उसका स्वतंन्त्र चिन्तन एवं उसका व्यक्तिवाद पर आधारित होना था ।

विज्ञान पर प्रभाव : Impact of Renaissance on science


– विज्ञान का विकास मध्ययुग की अन्तिम शताब्दियों में ही आरम्भ हो गया था। रॉजर बेकन प्रयोगीय विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है। उसने आर्थिक बन्धनों की चिन्ता न कर मानव समाज की मूर्खता व अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने का सराहनीय प्रयास किया।

उसके समय में लोग तर्क की कसौटी पर न कस कर अपनी धारणायें चार बातों पर बनाते थे, वे थीं- 1. अज्ञान लोगों की भीड़ का निश्चित मतः 2. नवीन विचारों को शंका से देखना; 3. अपने को सर्वज्ञ मानना, तथा 4. दुर्बल व अवैज्ञानिक प्रमाणों पर अवलंबित रहना । मध्य युग के वैज्ञानिक बिना विश्लेषण के प्रकृति के रहस्य तथा उसके चमत्कारों को स्वीकार कर लेते | परन्तु सोलहवीं शताब्दी के वैज्ञानिकों ने प्रत्येक तथ्य को अंगीकार करने से पूर्व उसे तर्क की कसौटी पर कसना आरम्भ किया। परन्तु उस काल में वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करने वाले वैज्ञानिकों को जेल में बन्द कर दिया जाता था । अतः बेकन और डेकार्ट को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। प्राचीन काल में यूनानी वैज्ञानिक टालमी ने मध्य युग में यह प्रमाणित कर दिया था कि पृथ्वी अचल है और सूर्य उसकी परिक्रमा करता है । परन्तु सोलहवीं शताब्दी में पोलैण्ड के विद्वान कापरनिकस ने इसके विरुद्ध यह सिद्ध किया कि सूर्य के चारों ओर पृथ्वी परिक्रमा करती है । परन्तु वह भी अपना यह मत मृत्युशय्या पर ही प्रतिपादित कर सका। कैथोलिक व प्रोटेस्टैण्ट दोनों चर्चे के अनुयायियों ने कोपरनिकस के सिद्धान्त को भयावह तथा धार्मिक विश्वास के प्रतिकूल माना । परन्तु सोलहवीं सदी में साहसी वैज्ञानिकों ने उसके सिद्धान्त को आगे बढ़ाया। जर्मन वैज्ञानिक कैप्लर ने अपने आधुनिक गणितीय नियमों के आधार पर कोपरनिकस के सिद्धान्त की पुष्टि की। पुनर्जागरण के प्रारंभिक वैज्ञानिकों में लियोनार्डी दा विंची का नाम भी उल्लेखनीय है । उसका विषय था मशीनों की उपयोगिता का वर्णन । फ्रांस का वैज्ञानिक डेकार्टे भी उस समय एक ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक था। उसने प्रत्येक विषय पर सन्देह करना आवश्यक बताया।


गैलिलियों ने भी कोपरनिकास के सिद्धान्तों की पुष्टि की और उसके सिद्धान्तों को लोकप्रिय बनाने के लिये उसने दूरबीन का आविष्कार किया तथा ‘नक्षत्रों का संदेश वाहन’ पुस्तक प्रकाशित की। इटली के अन्य वैज्ञानिक ब्रुनो ने यूनानी वैज्ञानिक टालेमी के सिद्धान्त का विरोध किया । उसने कहा कि पृथ्वी केन्द्र नहीं है वरन् सूर्य उसके चारों ओर घूमता है। परन्तु अपने इस विचार का प्रतिपादन करने के फलस्वरूप उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। रोमन चर्च ने उसे जिन्दा जलवा दिया।
रसायन शास्त्र में पुनर्जागरण के प्रभाव से अनेक अन्वेषण हुए। सोलहवीं शताब्दी में एंड्रियस वेसालियस ने रसायनशास्त्र के सहयोग से अनेक औषधिंया बनाई। उसका कहना था कि प्राचीन धारणाओं को चुनौती देना चाहिए और तथ्यों पर आधारित को स्वीकार करना चाहिये। हार्वे नामक विद्वान् ने यह सिद्ध किया कि रक्त मानव शरीर में चक्कर लगाता रहता है ।

इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध गणितज्ञ सर आइजक न्यूटन ने 17वीं सदी में आकर्षण – सिंद्धात का प्रतिपादन किया। उसने पता लगाया कि विभिन्न नक्षत्र एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उसके आविष्कारों का प्रभाव महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। अब यह स्पष्ट हो गया कि विश्व कोई दैवयोग या आकस्मिक घटना या फल नहीं अपितु एक ऐसी वस्तु है, जो प्रकृति के सुव्यवस्थित नियमों के अनुसार चल रहा है। न्यूटन कालान्तर में अपने समय के व्यक्तियों में सर्वाधिक लोकप्रिय बना।

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