यूरोप में 14वी और 16वी शताब्दी के बीच में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिनके प्रभाव से इतिहास में एक नया युग का शुरुआत हुआ । जिसे पुनर्जागरण(Renaissance) जाता है।
Renaissance is a French word meaning “rebirth.” It refers to a period in European Civilization that was marked by a revival of Classical learning and wisdom.
यूरोप में चौदवी और सोलहवी शताब्दी के बीच में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिनके प्रभाव से यूरोप के इतिहास में एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ । प्रथम घटना को पुनर्जागरण (Renaissance) कहा जाता है। इस घटना मानव के लौकिक ज्ञान बहुत अधिक वृद्धि की । इस लौकिक ज्ञान की वृद्धि से आधुनिक युग की कला, साहित्य, विज्ञान, दर्शन एवं जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में नवीन आदर्शों की स्थापना हुई। इससे पूर्व यूरोपीय जनता सामन्त-प्रथा, पवित्र रोमन साम्रा
आधुनिक विश्व का इतिहास तथा ईसाई धर्म की व्यापकता के अन्तर्गत् गहरी नींद में सोई हुई थी। उस समय शिक्षा का अभाव था। इस अभाव के कारण तथा धर्म की प्रधानता के कारण मानव समाज में स्वतन्त्र चिन्तन का सर्वथा अभाव था । पादरी-वर्ग धर्म-ग्रंथों के स्वतंत्र मनन तथा बौद्धिक विश्लेषण के सर्वथा विरुद्ध था । इस प्रकार उस समय यूरोप का मानव समाज एक प्रकार से गतिहीन सा हो गया था। बौद्धिक विकास की सभी दिशायें अवरुद्ध थीं । परन्तु यह स्थिति अधिक समय नहीं रहीं। धीरे-धीरे जन-साधारण एक नवीन जिज्ञासा जागृत होने लगी। इसके परिणाम स्वरूप मानव-जीवन के विभिन्न पहलुओं का नवीनीकरण हुआ । पन्द्रहवीं व सोलहवीं सदियों में रचनात्मक शक्ति का जागरण मान के कई कार्य-कलापों में दृष्टिगत होन लगा । सम्यता एवं संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में आशातीत विकास हुआ। यही प्रक्रिया पुनर्जागरण के नाम से इतिहास में विख्यात है। इस पुनर्जागरण को अधिकांश इतिहासकार एक ऐतिहासिक आन्दोलन बताते आये हैं। परन्तु इसके व्यापक प्रभाव पर हम जब गहराई से मनन करते हैं तो हमें यह ऐतिहासिक आन्दोलन के स्थान पर तत्कालीन मानसिक स्थिति को कहीं अधिक व्यक्त करता प्रतीत होता है।
प्रसिद्ध इतिहासकार जैकब बुर्कहार्ट की पुस्तक ‘इटली की पुनर्जागरणकालीन सभ्यता’ के प्रकाशन (1860 ) के उपरान्त यह धारणा भी प्रबल होती जा रही है कि ‘पुनर्जागरण कालीन में इटली के पूंजीवादी उद्यमों की भी महान् भूमिका रही है।
पुनर्जागरण का अर्थ
सभ्यता व संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में आशातीत विकास होने के कारण ही इसका ‘फिर से जागना’ बताते हैं । इतिहासकारों ने भी सामूहिक रूप से इसका अर्थ ‘बौद्धिक आन्दोलन’ बताया है। जानसन थामसन के मतानुसार ‘रेनेसा’ शब्द का प्रयोग इतिहासकार चौदहवीं शताब्दी में इटली की कला एवं ज्ञान के जागरण के अर्थ में करते हैं जो पन्द्रवीं शती में आल्पस पर्वत को पार कर सोलहवीं सदी में समस्त यूरोप में व्याप्त हो जाता है। इतिहासकार ल्यूकस ने भी इसी धारणा से सहमति व्यक्त करते लिखा है कि ‘रेनेसा’ शब्द का अर्थ इटली के उन सांस्कृतिक परिवर्तनों से है जो चौदहवीं शताब्दी से आरंभ होकर 1600 ई. तक सम्पूर्ण यूरोप में फैल गये । इतिहासकार स्वेन (Swain) के अनुसार मध्य-युग के अन्त में जितना बौद्धिक विकास हुआ उसे ही सामूहिक रूप से पुनर्जागरण कहा गया है। कुछ विद्वानों ने इसे ‘ग्रीक-लैटिन भाषाओं का पुनर्जन्म’ भी कहा है
पुनर्जागरण का अंग्रेजी शब्द रेनेसो (Renaissa) है। यह फ्रेंच भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘पुनर्जन्म’ | अतः पुनर्जागरण मनुष्य की उपलब्धियों की ओर संकेत करता है। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप जनसाधारण क्रमशः पर-लोक रुचि कम रखने लगा और इस लोक के विषय में अधिक जिज्ञासा रखने लगा । अतः पुनर्जागरण एक उदार सांस्कृतिक आन्दोलन था जो ऐतिहासिक आन्दोलन सिद्ध होने के स्थान पर तत्कालीन मानसिक स्थिति का द्योतक प्रमाणित हुआ । परन्तु कानरेड एप्पेल की धारणा है कि यह सांस्कृतिक आन्दोलन 13 वीं सदी में ही आरंभ हो गया था जो 14 वीं शती से 16 वीं शती तक विकसित होता रहा
पुनर्जागरण की परिभाषाएँ
लार्ड एक्ट के अनुसार– पुनर्जागरण “नई दुनियाँ के प्रकाश में आने के उपरान्त प्राचीन सभयता की पुनः खोज, मध्य युग के इतिहास को अन्त करने वाली तथा आधुनिक युग के आरंभ को सूचित करने वाली दूसरी सीमा की प्रतीक है। पुनर्जागरण यूनानी साहित्य के पुनः अध्ययन एवं उससे उत्पन्न परिणामों को सूचित करता है । “
हेज के अनुसार – “राजनीतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान व निरंकुश राजतन्त्रों के अभ्युदय एवं व्यापारिक क्षेत्र में पूंजीवाद की वृद्धि व यूरोपीय प्रसार की भांति समान रूप से महत्वपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति, पन्द्रवीं तथा सोलहवीं शती की यह वह बौद्धिक जागृति थी, जिसने आधुनिक समाज एवं सभ्यता को अत्याधिक मात्रा में प्रभावित किया । “
वैन ने कहा है कि “रेनेसां” (पुनर्जागरण) राजनीतिक अथवा धार्मिक आन्दोलन न होकर मानस की एक विशिष्ट स्थिति को उजागर करता है। “
डेविस के अनुसार–“पुनर्जागरण शब्द मानव के स्वातन्त्र प्रिय साहसी विचारों को, जो मध्य युग में धर्माधिकारियों द्वारा जकड़े व बन्दी बना दिए गये थे, व्यक्त करता है । “
फिशर के अनुसार-“मानववादी आन्दोलन का आरम्भ धर्म के क्षेत्र में नवीन दृष्टीकोण स्थापत्य एवं चित्र कला का नया स्वरूप, व्यक्तिवादी सिद्धान्तों का विकास, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और छापेखाने का आविष्कार इत्यादि विशेषताओं के साथ हुआ और वहीं सामूहिक रूप से ‘सांस्कृतिक नवजागरण’ कहा जाता है।”
उपयफ़क्त तथ्यों व इसके स्वरूप से यह स्पष्ट है कि पुनर्जागरण एक आकस्मिक घटना नहीं थी । यह एक वह आन्दोलन था जिसकी प्रक्रिया चौदहवीं सदी से सोलहवीं सदी के अन्तिम वर्षो तक चलती रही ।
क्या पुनर्जागरण मौलिक था? ( Is Renaissance fundamental ?)
क्या पुनर्जागरण मौलिक था?- निःसन्देह पुनर्जागरण यूरोप की एक महान् युगान्तकारी घटना थी। इसे उत्तर-मध्य- युग व आधुनिक युग को मिलाने वाला सेतु कह सकते हैं। उत्तर मध्यकाल को आधुनिक युग से मिलाने के लिए इस आन्दोलन ने मानव-विचारों में परिवर्तन लाने हेतु एक दीर्घकालीन क्रांति का आयोजन किया। इसीलिये प्रो. वीच ने कहा है- “पुनर्जागरण का आरम्भ यूरोपीय इतिहास की कोई आकस्मिक घटना नहीं थी । ” चौदहवीं शताब्दी से पूर्व भी समय-समय पर वैयक्तिक अथवा सामूहिक मानसिक उद्वेग, चिन्तन और मनन के उदाहरण मिलते हैं। ऐसे प्रत्येक अवसर पर नवीन चिन्तन का प्राचीनता से कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य रहा है । पुनर्जागरण से पूर्व इस प्रकार का बौद्धिक आंदोलन कैरोलिगिंयन (Carolingian) सम्राट चार्ल्स महान के समय में हुआ था । पर वह भी यूनान – रोमन सभ्यता के तत्वों से प्रभावित था । इसका प्रारंभ 9 वीं सदी में हुआ था । चार्ल्स के इस लोक से विदा होते ही उस बौद्धिक आन्दोलन के प्रभाव समाप्त हो गये । अतः लोगों को इसके बारे में कम जानकारी है ।
इसी प्रकार का दूसरा आन्दोलन 12वीं सदी में हुआ था और उसे अलबिजेनसियन (Albigansian) की संज्ञा दी गई थी। इसके विकास में मानववादी विचारों की आधिक भूमिका थी। यह धार्मिक से अधिक बौद्धिक, सामाजिक व साहित्यिक विकास का उदाहरण था । परन्तु पादरी वर्ग ने इसे फलीभूत नहीं होने दिया ।
तीसरा पुनर्जागरण आन्दोलन सम्राट फ्रेडरिक द्वितीय के समय हुआ । फ्रेडरिक धार्मिक संकीर्णता का विरोधी था तथा मानसिक-स्वतन्त्र्ता तथा आत्म-निर्भरता का समर्थक था। मानसिक स्वतन्त्रता तथा आत्म-निर्भरता पुनर्जागरण के प्रमुख लक्षण थे। इस स्वतन्त्रता का मूल कारण यह था कि फ्रेडरिक पाश्चात्य विचारों से प्रभावित था। एक अर्थ में वह आधुनिक व्यक्ति था । उसने नेपिल्स (Naplesa) में एक विश्व विद्यालय की स्थापना भी की थी। उसने एलबिजेनसियन विद्वानों को अपने यहां आश्रय भी दिया था। उसकी इस नीति के कारण सिसली में उस बौद्धिक एवं साहित्यिक वातावरण का सृजन हुआ जिसका पुनर्जागरण काल में इटली के कई शासकों ने अनुसरण किया
दांते (Dante) ने भी पुनर्जागरण का पूर्वाभास दिया था। उसकी ‘डिवाइन कॉमेडी‘ (Divine Comedy ) मध्य युग का महाकाव्य (Divine right of Kingship) माना गया है। उसका धर्मशास्त्र मध्य युग का शास्त्र था। अपने युग के अन्य लोगों की तरह वह भी पोपतन्त्र तथा राजतन्त्र के दैवी सिद्धांत में विश्वास करता था। धर्मद्रोह से उसे चिढ़ तथा भय था । ग्रीको लक्षणों से युक्त होने पर भी वह आने वाले नव-युग का मसीहा तथा पुनर्जागरण का अग्रदूत माना गया है। वर्जिल (Virgil) उसका आदर्श था। अपनी आत्म-निर्भरता, तार्किक प्रवृति और अत्याधिक वैयक्तिकता के कारण वह मध्यकालीन से भी अधिक अर्वाचीन जान पड़ता है।
अतः स्पष्ट है कि पुनर्जागरण एक मौलिक आन्दोलन नहीं कहा जा सकता। इसके कई लक्षण पहले से ही विद्यमान थे। इस आन्दोलन के जो प्रमुख लक्षण माने जाते हैं, वे लक्षण इससे पूर्व होने वाले बौद्धिक आन्दोलनों में विद्यमान थे। फिर दांते को तो पुनर्जागरण का अग्रदूत (Apsotle) कहा गया है।